Friday, September 5, 2014

CHAPTER- 2 BAL GOBIN BHAGAT

बालगोबिन भगत

प्रश्न ८: धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं ? उस माहौल का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए |
उत्तर: आषाढ़ की रिमझिम फुहारों के बीच खेतों में धान की रोपाई चल रही थी | ठंडी पुरवाई के झोंकों के साथ एक स्वरलहरी वातावरण में गूँज उठी | बालगोबिन भगत के कंठ से निकला मधुर संगीत वहाँ खेतों में काम कर रहे लोगों के मन में झंकार उत्पन्न करने लगा | स्वर के आरोह के साथ एक-एक शब्द जैसे स्वर्ग की ओर भेजा जा रहा हो | कुछ शब्द धरती पर खड़े लोगों के कानों की ओर भी आ रहे थे | बच्चे खेलते हुए ही झूमने लगे | मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ फड़क उठे, परवश - सी वे गीत की धुन गुनगुनाने लगीं | हलवाहों के पैर गीत के ताल के साथ उठने लगे | रोपाई करने वाले लोगों की उँगलियाँ गीत की स्वरलहरी के अनुरूप एक विशेष क्रम से चलने लगीं | बालगोबिन भगत के संगीत का जादू सम्पूर्ण वातावरण पर छा गया | सारी सृष्टि संगीतमय हो उठी |    
         
प्रश्न १०: आप की दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे? 
उत्तर:  मेरी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के निम्नलिखित कारण रहे होंगे - 
१. कबीर का आडम्बरों से रहित सादा जीवन 
२. सामाजिक कुरीतियों का अत्यंत विरोध करना
३. कामनायों से रहित कर्मयोग का आचरण
४. इश्वर के प्रति अनन्य प्रेम
५. भक्ति से परिपूर्ण मधुर गीतों की रचना
६. आदर्शों को व्यवहार में उतरना

प्रश्न १२: "ऊपर की तस्वीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे |" क्या 'साधु' की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए ? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति 'साधु' है ?     
उत्तर: एक साधु की पहचान उसके पहनावे से नहीं बल्कि उसके अचार - व्यवहार तथा उसकी जीवन प्रणाली पर आधारित होती है | यदि व्यक्ति का आचरण सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, त्याग, लोक-कल्याण आदि से युक्त है, तभी वह साधु है | साधु का जीवन सात्विक होता है | उसका जीवन भोग-विलास की छाया से भी दूर होता है | उसके मन में केवल इश्वर के प्रति सच्ची भक्ति होती है | 

प्रश्न १३: मोह और प्रेम में अंतर होता है | भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे ?
उत्तर: भगत को अपने पुत्र तथा अपनी पुत्रवधू से अगाध प्रेम था | परंतु उसके इस प्रेम ने प्रेम की सीमा को पार कर कभी मोह का रूप धारण नहीं किया | जब भगत के पुत्र की मृत्यु हो जाती है तो पुत्र मोह में पड़कर वो रोते-विलखते नहीं है बल्कि पुत्र की आत्मा का परमात्मा के मिलन से खुश होते हैं | दूसरी तरफ वह चाहते तो मोहवश अपनी पुत्र वधु को अपने पास रोक सकते थे परंतु उन्होंने ऐसा नहीं करके अपनी पुत्रवधू को उसके भाई के साथ भेजकर उसके दूसरे विवाह का निर्णय किया | सच्चा प्रेम अपने सगे-सम्बन्धियों की खुशी में है | 
परंतु मोहवश हम सामनेवाले की सुख की अपेक्षा अपने सुख को प्रधानता देते हैं | भगतजी ने सच्चे प्रेम का परिचय देकर अपने पुत्र और पुत्रवधू की खुशी को ही उचित माना | 

2 comments:

  1. Nice Blog! But why there is no subscribe option?

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    1. Hello,
      Thankyou, I've added the subscribe option you can now subscribe me.

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